🇮🇳प्रताप का प्रताप🇮🇳
जीवन जिसका सारा बीता ,
बरछी और कृपाणों में ।
जान गई पर आँच न आई,
बिछ गए तीर कमानों में ।
दुश्मन को देकर चुनौती,
आजादी का मूल्य चुकाया ।
घास की सूखी रोटी खाकर भी,
अकबर का मान घटाया था ।
महाकाल का वह भक्त निराला,
जय घोष पर अंबर डोला था ।
बैरी के मस्तक काटने को,
चेतक भी हर -हर बोला था।
धन्य वीर बलिदानी को,
मातृभूमि अभिमानी को ।
धरा होती जिससे सुशोभित,
ऐसी अमिट कहानी को ।
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