कभी बैठ भी लिया करो अपनेपन के लिए
अपनों के बीच अपनापन , क्या वास्तव में होता है | कही अपने है तो अपनापन नहीं है , और जहाँ अपनापन लगता है तो वो अपने नहीं है | जितना सच म्रत्यु है उतना ही सच छिपा है मेरी उपरोक्त पंक्तियों में |
एक भ्रम जाल सा बना रखा है लोगों ने अपने बीच | खुश रहना सीख रहा है व्यक्ति लेकिन वो खुश है नहीं , अब
कौन समझाएं लोगों को की खुशियां सीखना नहीं है , जीवन जीना सकारात्मक रूप से यही ख़ुशी है |
कुछ ऐसा ही दिन रहा आज का |
मेरे एक रिश्तेदार { दूर के हालाँकि दिल से नहीं } आज शादी के चौदह वर्ष पश्चात सपत्नी उनके घर जाना हुआ
उनकी पत्नी जो की मेरी दीदी लगती है कई बार हम लोगों को बुला चुकी थी लेकिन अपनी पत्नी के साथ जाना नहीं हो पाया , आज अपने ही एक अन्य रिलेटिव के यहाँ उनके पति के एक्सीडेंट से फ्रेक्चर की जानकारी हुई है तो हम दोनों उनके यहाँ चले गये | उनके पूरे परिवार को हमारे आने की ख़ुशी हुई और अपनापन जो की अंदर ही अंदर दिल से महसूस हुआ उसको मैं वर्णित नहीं कर सकता | बस ये संकल्पना की कि इस जीवन में अपनेपन के लिए ऐसे सच्चे और अच्छे लोगों ( दोस्त / रिश्तेदार ) के साथ बैठना चाहिए | उन्होंने ना कोई शिका- शकवा किया ना कोई ताना दिया शायद कहीं और होते तो पहली लाइन ही यह होती - इधर की राश्ता कैसे भूल गये भाई |
तो साथियों यही कहना है जीवन जिए खुश रहे , शिकवे ना करे , तुलना ना करे , घर से बाहर काम के अतिरिक्त जब भी निकले शुकून के लिए निकले और घर लाये ढेर सारी सकारात्मकता |
नमस्ते भाइयो |
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